मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का
मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का
है गिला अपने हाल-ए-अबतर का
हाल लिखता हूँ जान-ए-मुज़्तर का
रग-ए-बिस्मिल है तार मिस्तर का
आँख फिरने से तेरी मुझ को हुआ
गर्दिश-ए-दहर दौर साग़र का
शोला-रू यार शोला-रंग शराब
काम याँ क्या है दामन-ए-तर का
शौक़ को आज बे-क़रारी है
और वादा है रोज़-ए-महशर का
नक़्श-ए-तस्ख़ीर-ए-ग़ैर को उस ने
ख़ूँ लिया तो मिरे कबूतर का
मेरी नाकामी से फ़लक को हुसूल
काम है ये उसी सितमगर का
उस ने आशिक़ लिखा अदू को लक़ब
हाए लिक्खा मिरे मुक़द्दर का
आप से लहज़ा लहज़ा जाते हो
'शेफ़्ता' है ख़याल किस घर का
(463) Peoples Rate This