कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम
कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम
दानाइयों से अच्छे हैं नादानियों में हम
शायद रक़ीब डूब मरें बहर-ए-शर्म में
डूबेंगे मौज-ए-अश्क की तुग़्यानियों में हम
मोहताज-ए-फ़ैज़-ए-नामिया क्यूँ होते इस क़दर
करते जो सोच कुछ जिगर-अफ़्शानियों में हम
पहुँचाई हम ने मश्क़ यहाँ तक कि हो गए
उस्ताद-ए-अंदलीब नवा-ख़्वानियों में हम
ग़ैरों के साथ आप भी उठते हैं बज़्म से
लो मेज़बान बन गए मेहमानियों में हम
जिन जिन के तू मज़ार से गुज़रा वो जी उठे
बाक़ी रहे हैं एक तिरे फ़ानियों में हम
गुस्ताख़ियों से ग़ैर की उन को मलाल है
मशहूर होते काश अदब-दानियों में हम
देखा जो ज़ुल्फ़-ए-यार को तस्कीन हो गई
यक-चंद मुज़्तरिब थे परेशानियों में हम
आँखों से यूँ इशारा-ए-दुश्मन न देखते
होते न इस क़दर जो निगहबानियों में हम
जो जान खो के पाएँ तो फ़ौज़-ए-अज़ीम है
वो चीज़ ढूँडते हैं तन-आसानियों में हम
पीर-ए-मुग़ाँ के फ़ैज़-ए-तवज्जोह से 'शेफ़्ता'
अक्सर शराब पीते हैं रूहानियों में हम
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