गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया
गोर में याद-ए-क़द-ए-यार ने सोने न दिया
फ़ित्ना-ए-हश्र को रफ़्तार ने सोने न दिया
वाह ऐ ताला-ए-ख़ुफ़्ता कि शब-ए-ऐश में भी
वह्म-ए-बेख़्वाबी-ए-अग़्यार ने सोने न दिया
वा रहीं सूरत-ए-आग़ोश सहर तक आँखें
शौक़-ए-हम-ख़्वाबी-ए-दिलदार ने सोने न दिया
यास से आँख भी झपकी तो तवक़्क़ो से खुली
सुब्ह तक वादा-ए-दीदार ने सोने न दिया
ताला-ए-ख़ुफ़्ता की तारीफ़ कहाँ तक कीजे
पाँव को भी ख़लिश-ए-ख़ार ने सोने न दिया
दर्द-ए-दिल से जो कहा नींद न आई तो कहा
मुझ को कब नर्गिस-ए-बीमार ने सोने न दिया
शब-ए-हिज्राँ ने कहा क़िस्सा-ए-गेसू-ए-दराज़
'शेफ़्ता' को भी दिल-ए-ज़ार ने सोने न दिया
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