गह हम से ख़फ़ा वो हैं गहे उन से ख़फ़ा हम
गह हम से ख़फ़ा वो हैं गहे उन से ख़फ़ा हम
मुद्दत से इसी तरह निभी जाती है बाहम
करते हैं ग़लत यार से इज़हार-ए-वफ़ा हम
साबित जो हुआ इश्क़ कुजा यार कुजा हम
कुछ नश्शा-ए-मय से नहीं कम नश्शा-ए-नख़वत
तक़्वा में भी सहबा का उठाते हैं मज़ा हम
मौजूद है जो लाओ जो मतलूब है वो लो
मुश्ताक़-ए-वफ़ा तुम हो तलबगार-ए-जफ़ा हम
ने तब्अ' परेशाँ थी न ख़ातिर मुतफ़र्रिक़
वो दिन भी अजब थे कि हम और आप थे बाहम
क्या करते हैं क्या सुनते हैं क्या देखते हैं हाए
उस शोख़ के जब खोलते हैं बंद-ए-क़बा हम
ये तर्ज़-ए-तरन्नुम कहीं ज़िन्हार न ढूँडो
ऐ 'शेफ़्ता' या मुर्ग़-ए-चमन रखते हैं या हम
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