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देखूँ तो कहाँ तक वो तलत्तुफ़ नहीं करता - मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता कविता - Darsaal

देखूँ तो कहाँ तक वो तलत्तुफ़ नहीं करता

देखूँ तो कहाँ तक वो तलत्तुफ़ नहीं करता

आरे से अगर चीरे तो मैं उफ़ नहीं करता

तुम देते हो तकलीफ़ मुझे होती है राहत

सच जानिए मैं इस में तकल्लुफ़ नहीं करता

सब बातें उन्हीं की हैं ये सच बोलियो क़ासिद

कुछ अपनी तरफ़ से तो तसर्रुफ़ नहीं करता

सौ ख़ौफ़ की हो जाए मगर रिन्द-ए-नज़रबाज़

दिल जल्वागह-ए-लानशफ़-ओ-शुफ़ नहीं करता

शोख़ी से किसी तरह से चैन उस को नहीं है

आता है मगर आ के तवक़्क़ुफ़ नहीं करता

उस शोख़-ए-सितमगर से पड़ा है मुझे पाला

जो क़त्ल किए पर भी तअस्सुफ़ नहीं करता

जो कुछ है अना में वो टपकता है अना से

कुछ आप से मैं ज़िक्र-ए-तसव्वुफ़ नहीं करता

तस्कीन हो क्या वादे से माशूक़ है आख़िर

हर चंद सुना है कि तख़ल्लुफ़ नहीं करता

क्या हाल तुम्हारा है हमें भी तो बताओ

बे-वजह कोई 'शेफ़्ता' उफ़ उफ़ नहीं करता

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In Hindi By Famous Poet Shefta Mustafa Khan. is written by Shefta Mustafa Khan. Complete Poem in Hindi by Shefta Mustafa Khan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.