रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

मगर ख़मोश अब जो हो गए हैं इनायतें माह ओ साल की हैं

कहाँ से दुनिया को आ गए हैं ये तौर उस के तरीक़ उस के

मुज़ाहिरा सब गुरेज़ का है अलामतें सब विसाल की हैं

नज़र उठाओ तो हर तरफ़ है बहिश्त-ए-हुस्न-ओ-जमाल लेकिन

कहाँ वो अंदाज़ उस का लहजा शबाहतें ख़द्द-ओ-ख़ाल की हैं

निगार-ए-फ़न है कि माँगती है लहू से हर-दम ख़िराज अपना

हमारा क्या साथ दे सकेंगी जो शोहरतें बे-कमाल की हैं

ये झुकती शाख़ें सरकते साए महकती ख़ुश्बू बहकते बादल

उठो इन्हें जावेदाँ तो कर लें कि साअतें ये विसाल की हैं

ये ख़ुद-कलामी ये बे-नियाज़ी ये शहर वालों से दूर रहना

अमानतें 'आज़मी' यक़ीनन किसी ग़म-ए-ला-ज़वाल की हैं

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In Hindi By Famous Poet Sheesh Mohammad Ismail Azmi. is written by Sheesh Mohammad Ismail Azmi. Complete Poem in Hindi by Sheesh Mohammad Ismail Azmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.