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दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे - शीन काफ़ निज़ाम कविता - Darsaal

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे

बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे

आँखों को अता ख़्वाब किए शुक्रिया लेकिन

पैकर भी कोई ख़्वाबों में ढलने के लिए दे

पानी का ही पैकर किसी पर्बत को अता कर

इक बूँद ही नद्दी को उछलने के लिए दे

सहमी हुई शाख़ों को ज़रा सी कोई मोहलत

सूरज की सवारी को निगलने के लिए दे

सब वक़्त की दीवार से सर फोड़ रहे हैं

रौज़न ही कोई भाग निकलने के लिए दे

सैलाब में साअत के मुझे फेंकने वाले

टूटा हुआ इक पुल ही सँभलने के लिए दे

महफ़ूज़ जो तरतीब-ए-अनासिर से हैं असरार

तो ख़ोल को इक आँच पिघलने के लिए दे

तख़्ईल को तख़्लीक़ की तौफ़ीक़ अता कर

फिर पहलू से इक चीज़ निकलने के लिए दे

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In Hindi By Famous Poet Sheen Kaaf Nizam. is written by Sheen Kaaf Nizam. Complete Poem in Hindi by Sheen Kaaf Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.