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आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ - शीन काफ़ निज़ाम कविता - Darsaal

आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ

आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ

मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ

जिस्म तू भी और मैं भी जिस्म हूँ

किस तरह फिर तेरा पैराहन बनूँ

रास्ता कोई कहीं मिलता नहीं

जिस्म में जन्मों से अपने क़ैद हूँ

थी घुटन पहले भी पर ऐसी न थी

जी में आता है कि खिड़की खोल दूँ

ख़ुद-कुशी के सैंकड़ों अंदाज़ हैं

आरज़ू ही का न दामन थाम लूँ

साअतें सनअत-गरी करने लगीं

हर तरफ़ है याद का गहरा फ़ुसूँ

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In Hindi By Famous Poet Sheen Kaaf Nizam. is written by Sheen Kaaf Nizam. Complete Poem in Hindi by Sheen Kaaf Nizam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.