तिरे ख़याल को भी फ़ुर्सत-ए-ख़याल नहीं
तिरे ख़याल को भी फ़ुर्सत-ए-ख़याल नहीं
जुदाई हिज्र नहीं है मिलन विसाल नहीं
मिरे वजूद में ऐसा समा गया कोई
ग़म-ए-ज़माना नहीं फ़िक्र-ए-माह-ओ-साल नहीं
उसे यक़ीन के सूरज से ही उभरना है
वो सैल-ए-वहम में बहता हुआ जमाल नहीं
दहक उठे मिरे आरिज़ महक उठीं साँसें
फिर और क्या है अगर ये तिरा ख़याल नहीं
न-जाने कितने जहाँ मुंतज़िर हैं तेरे लिए
तिरे उरूज की पहले कहीं मिसाल नहीं
(602) Peoples Rate This