वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए
वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए
तिरे रंग-ओ-बू के वो क़ाफ़िले तिरे पैरहन से चले गए
कोई आस है न हिरास है शब-ए-माह कितनी उदास है
वो जो रंग रंग के अक्स थे वो किरन किरन से चले गए
कोई उन की आँखें सराहता कोई वहशतों से निबाहता
कि वो आहुवान-ए-रमीदा-ख़ू ये सुना ख़ुतन से चले गए
कई मेहर-ओ-मह उतर आए थे वो यहीं थे मेरे घर आए थे
वो कली कली से दर आए थे वो चमन चमन से चले गए
मिरे दिल की आब-ओ-हवा लगी कि वफ़ा भी उन को ख़ता लगी
वही सादगी से जो आए थे वही बाँकपन से चले गए
न तो कुफ़्र के न ख़ुदा के हम न दवा के हम न दुआ के हम
कि बुतान-ए-का'बा-ए-आरज़ू दिल-ए-बरहमन से चले गए
ये मिरा फ़रेब-ए-नज़र नहीं मिरे हम-क़दम थे यहीं कहीं
मुझे आहटें भी न मिल सकीं वो बड़े जतन से चले गए
ये बजा कि तोहफ़ा-ए-जाँ लिए तिरे पास आए थे बे पिए
वो गदागरान-ए-तही-सुबू तिरे हुस्न-ए-ज़न से चले गए
यही तुझ से अपना था वास्ता यही थी हयात-ए-मुआ'शक़ा
तिरी ख़ल्वतों के शरीक थे तिरी अंजुमन से चले गए
पस-ए-उम्र बाज़ू-ए-शौक़ पर सर-ए-नाज़ था तो हुई ख़बर
कई रत-जगे तिरे गेसुओं की शिकन शिकन से चले गए
वो बुझे बुझे वो लुटे लुटे सर-ए-राह 'शाज़' मिले तो थे
उन्हें अब वतन में न ढूँडिए कि वो अब वतन से चले गए
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