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सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए - शाज़ तमकनत कविता - Darsaal

सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए

सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए

दुनिया से डर रहे थे कि दुनिया बदल न जाए

हर महफ़िल-ए-नशात से फिरता हूँ दूर दूर

क्या एहतियात है कि तिरा ग़म बहल न जाए

तो आज तक तो है मिरी नज़रों में हू-ब-हू

दुनिया बदल गई तिरी सूरत बदल न जाए

हैं ताक़-ए-आरज़ू पे खिलौने सजे हुए

मायूस आरज़ू की तबीअ'त मचल न जाए

तिश्ना-लबी कहीं मुझे ग़र्क़ाब कर न दे

थोड़ी सी रौशनी के लिए घर ही जल न जाए

इक ख़ौफ़ है कि मंज़िल-ए-निस्याँ क़रीब है

तू वादी-ए-ख़याल से आगे निकल न जाए

रोऊँ कहाँ कि राहत-ए-ख़ल्वत नहीं है 'शाज़'

हँसने पे भी ये शर्त कि आँसू निकल न जाए

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In Hindi By Famous Poet Shaz Tamkanat. is written by Shaz Tamkanat. Complete Poem in Hindi by Shaz Tamkanat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.