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कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं - शाज़ तमकनत कविता - Darsaal

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं

बहुत दिनों से ख़ुशी को तरस रहा हूँ मैं

सहर की ओस में भीगा हुआ बदन तेरा

वो आँच है कि चमन में झुलस रहा हूँ मैं

क़दम क़दम पे बिखरता चला हूँ सहरा में

सदा की तरह मकीन-ए-जरस रहा हूँ मैं

कोई ये कह दे मिरी आरज़ू के मोती से

सदफ़ सदफ़ की क़सम है बरस रहा हूँ मैं

हयात-ए-इश्क़ मुझे आज अजनबी न समझ

कि साया साया तिरे पेश-ओ-पस रहा हूँ मैं

नफ़स की आमद-ओ-शुद भी है सानेहे की तरह

गवाह रह कि तिरा हम-नफ़स रहा हूँ मैं

जहाँ भी नूर मिला खिल उठा शफ़क़ की तरह

जहाँ भी आग मिली ख़ार-ओ-ख़स रहा हूँ मैं

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In Hindi By Famous Poet Shaz Tamkanat. is written by Shaz Tamkanat. Complete Poem in Hindi by Shaz Tamkanat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.