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जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है - शाज़ तमकनत कविता - Darsaal

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

जितना चाहा था तुझे उतनी सज़ा पाई है

में जिसे देखना चाहूँ वो नज़र न आ सके

हाए इन आँखों पे क्यूँ तोहमत-ए-बीनाई है

बारहा सर-कशी ओ कज-कुलही के बा-वस्फ़

तेरे दर पर मुझे दरयूज़ा-गरी लाई है

सदमा-ए-हिज्र में तू भी है बराबर का शरीक

ये अलग बात तुझे ताब-ए-शकेबाई है

भूलने वाले ने शायद ये न सोचा होगा

एक दो दिन नहीं बरसों की शनासाई है

जाम-ख़ुश-रंग तही है मुझे मा'लूम न था

अपनी टूटी हुई तौबा पे हँसी आई है

ये तवज्जोह भी तिरी हुस्न-ए-गुरेज़ाँ की तरह

ये तग़ाफ़ुल भी मिरी हौसला-अफ़ज़ाई है

तेरा लहजा है कि सन्नाटे ने आँखें खोलीं

तेरी आवाज़ कलीद-ए-दर-ए-तन्हाई है

'शाज़' पूछो कि ये आँखों का धुँदलका कब तक

रात आई नहीं या नींद नहीं आई है

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In Hindi By Famous Poet Shaz Tamkanat. is written by Shaz Tamkanat. Complete Poem in Hindi by Shaz Tamkanat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.