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छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी - शाज़ तमकनत कविता - Darsaal

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

मुझ को मालूम न था क्या है तमन्ना तेरी

मैं अँधेरे में नहीं दिन के उजाले में लुटा

अब किसे ढूँढे है शम-ए-रुख़-ए-ज़ेबा तेरी

जब कोई पास-ए-मुरव्वत से करम करता है

याद आती है बहुत रंजिश-ए-बे-जा तेरी

पय-ब-पय साथ छुटा जाता है इक दुनिया का

दम-ब-दम याद चली आती है गोया तेरी

दामन-ओ-दस्त-ए-रसा बात ख़ुदा-साज़ तो है

ना-रसाई भी मशिय्यत है ख़ुदाया तेरी

मुंहदिम हो गई दीवार-ए-दिल-ए-दीवाना

मेरी क़िस्मत में थी तस्वीर-ए-शिकस्ता तेरी

तार-तार-ए-नफ़स-ए-जाँ में तिरा नग़्मा है

पैरहन में है अभी बू-ए-शनासा तेरी

ग़ज़ल-ए-'शाज़' है सदक़ा तिरी रा'नाई का

रग-ए-हर-शे'र में है मौज-ए-सरापा तेरी

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In Hindi By Famous Poet Shaz Tamkanat. is written by Shaz Tamkanat. Complete Poem in Hindi by Shaz Tamkanat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.