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शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है - शायान क़ुरैशी कविता - Darsaal

शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है

शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है

तारीकी में देख सकूँ तो आँखों में बीनाई है

एहसासात की तह तक जाना कितना मुश्किल होता है

ज़ेहन-ओ-दिल में जितना उतरो उतनी ही गहराई है

रिश्ते-नाते बाहर से तो जिस्म को घेरे बैठे हैं

रूह के अंदर झाँक के देखो मीलों तक तन्हाई है

लफ़्ज़ों ने ही नश्तर बन के दिल को गहरे ज़ख़्म दिए

लफ़्ज़ों ने ही ज़ख़्म-ए-दिल को ठंडक भी पहुँचाई है

पीठ पे करता वार तो शायद में सदमे से मर जाता

मैं तो ख़ुश हूँ मैं ने उस से चोट जिगर पे खाई है

कमरों के बटवारे में इक कमरा ज़ाइद जाने दो

लेकिन ये एहसास बचा लो अपना ही तो भाई है

दीप जला कर दुनिया वाले इस तीली को भूल गए

लेकिन सच है दीपक रौशन करती दिया-सलाई है

मजज़ूबों के खेल समझना सब के बस की बात नहीं

पहले ज़ख़्म उधेड़ के जाना फिर उस की तुरपाई है

रातें अपनी रौशन कर लो अश्कों से 'शायान' अभी

वक़्त से पहले अपने सफ़र की तय्यारी दानाई है

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In Hindi By Famous Poet Shayan Quraishi. is written by Shayan Quraishi. Complete Poem in Hindi by Shayan Quraishi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.