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सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब - शायान क़ुरैशी कविता - Darsaal

सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब

सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब

ये ऐसा है कि जैसे घर से हों दीवार-ओ-दर ग़ाएब

हज़ारों मुश्किलें आईं वफ़ा की राह में मुझ पर

कभी मंज़िल हुई ओझल कभी राह-ए-सफ़र ग़ाएब

अजब मंज़र ये देखा है ख़िरद वालों की बस्ती में

यहाँ सर तो सलामत थे मगर फ़िक्र-ओ-नज़र ग़ाएब

हसीं मौसम ने नज़रें फेर लीं अपने तग़ाफ़ुल पर

हुए रफ़्तार-ए-दुनिया के सबब शाम-ओ-सहर ग़ाएब

परिंदो लौट कर आना ज़रा जल्दी उड़ानों से

न हो जाएँ कहीं आँगन से ये बूढ़े शजर ग़ाएब

ये किस की सुर्ख़ी-ए-रुख़ शाम के चेहरे पे उतरी है

कि जिस के रंग में मिल कर हुए ज़ख़्म-ए-जिगर ग़ाएब

कमी पहले ही थी शायान अहल-ए-ज़र्फ़ की लेकिन

नज़र से हो रहे हैं आज कल अहल-ए-नज़र ग़ाएब

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In Hindi By Famous Poet Shayan Quraishi. is written by Shayan Quraishi. Complete Poem in Hindi by Shayan Quraishi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.