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बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक - शायान क़ुरैशी कविता - Darsaal

बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक

बिखरी थी हर सम्त जवानी रात घनेरी होने तक

लेकिन मैं ने दिल की न मानी रात घनेरी होने तक

दर्द का दरिया बढ़ते बढ़ते सीने तक आ पहुँचा है

और चढ़ेगा थोड़ा पानी रात घनेरी होने तक

आग पे चलना क़िस्मत में है बर्फ़ पे रुकना मजबूरी

कौन सुनेगा अपनी कहानी रात घनेरी होने तक

उस के बिना ये गुलशन भी अब सहरा जैसा लगता है

लगता है सब कुछ बे-मा'नी रात घनेरी होने तक

ख़ून-ए-जिगर से हम को चराग़ाँ करना है सो करते हैं

अपनी है ये रीत पुरानी रात घनेरी होने तक

जिन होंटों ने प्यासे रह कर हम को अपने जाम दिए

याद करो उन की क़ुर्बानी रात घनेरी होने तक

दिल में अपने ज़ख़्म-ए-तमन्ना आँखों में कुछ ख़्वाब लिए

बरसों हम ने ख़ाक है छानी रात घनेरी होने तक

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In Hindi By Famous Poet Shayan Quraishi. is written by Shayan Quraishi. Complete Poem in Hindi by Shayan Quraishi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.