इतरा के आईना में चिढ़ाते थे अपना मुँह
देखा मुझे तो झेंप गए मुँह छुपा लिया
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लब चुप हैं तो क्या दिल गिला-पर्दाज़ नहीं है
तेरी सी भी आफ़त कोई ऐ सोज़िश-ए-तब है
वो ले के दिल को ये सोची कहीं जिगर भी है
दिल मिरा टूटा तो उस को कुछ मलाल आ ही गया
रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर
जफ़ा पे शुक्र का उम्मीद-वार क्यूँ आया
अबरू है का'बा आज से ये नाम रख दिया
हुई या मुझ से नफ़रत या कुछ इस में किब्र-ओ-नाज़ आया
दिल खोटा है हम को उस से राज़-ए-इश्क़ न कहना था
भागे अच्छी शक्लों वाले इश्क़ है गोया काम बुरा