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नहीं ज़माने में हासिल कहीं ठिकाना मुझे - शौक़ जालंधरी कविता - Darsaal

नहीं ज़माने में हासिल कहीं ठिकाना मुझे

नहीं ज़माने में हासिल कहीं ठिकाना मुझे

कहाँ कहाँ लिए फिरता है आब-ओ-दाना मुझे

वो देखते हैं ब-अंदाज़-ए-मुजरिमाना मुझे

कि जिन से प्यार है ऐ दोस्त वालिहाना मुझे

झुलसती धूप में ऐ काश ऐसा वक़्त आए

नसीब हो तिरी पलकों का आशियाना मुझे

कभी रहा न ग़रीबों से वास्ता जिस को

वो देगा क्या मिरी मेहनत का मेहनताना मुझे

बला से जुर्म हो इंसाफ़ की निगाहों में

तुम्हारी बात तो लगती है मुंसिफ़ाना मुझे

तलाश-ए-रिज़्क़ में आए न जिस में कोताही

इलाही दे वही परवाज़-ए-ताइराना मुझे

मैं सादा-लौही पे अपनी हूँ मुतमइन यारो

ख़ुदा के वास्ते समझे न कोई दाना मुझे

मिरी हयात की ये भी अजीब उलझन है

भुलाना तुझ को कभी भी लगा रवा न मुझे

किताब दी थी सदाक़त की माँ ने हाथों में

सफ़र पे पहले-पहल जब किया रवाना मुझे

ख़ुदा का शुक्र है ऐ 'शौक़' अब भी ज़िंदा हूँ

सता रहा है ज़माने से ये ज़माना मुझे

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In Hindi By Famous Poet Shauq Jalandhari. is written by Shauq Jalandhari. Complete Poem in Hindi by Shauq Jalandhari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.