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मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला - शौक़ बहराइची कविता - Darsaal

मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला

मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला

मुर्ग़ियाँ पालीं मगर एक भी अण्डा न मिला

हुस्न-ए-ख़ुद-बीं न मिला हुस्न-ए-ख़ुद-आरा न मिला

जब मैं ससुराल गया एक भी साला न मिला

किस तरह जाता कोई मंज़िल-ए-मक़्सद की तरफ़

कोई यक्का कोई तांगा कोई रिक्शा न मिला

नज़र आया न कहीं नासेह-ए-नादाँ मेरा

जुस्तुजू जिस की थी वो मिट्टी का बबुवा न मिला

अब की नाकाम रहा क़ाइद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत

अब की बर्बादी-ए-अक़्वाम का ठेका न मिला

शैख़-साहिब के तलव्वुन का फ़ुसूँ है ये भी

मस्जिदों में कभी इक मिट्टी का बधना न मिला

ऐ ग़म-ए-दोस्त ज़ियाफ़त मैं तिरी क्या करता

एक ख़ुराक से राशन ही ज़ियादा न मिला

लाख बाज़ार-ए-मोहब्बत के लगाए फेरे

बे-वक़ूफ़ी के सिवा और कोई सौदा न मिला

किस तरह से कोई तामीर-ए-नशेमन करता

कभी सुतली न मिली और कभी सेठा न मिला

दोस्त की शीरीं-बयानी का मज़ा क्या कहिए

ऐसी बर्फ़ी कभी ऐसा कभी पेङ़ा न मिला

रक्खे ही रक्खे हुई जिंस-ए-करम सब बर्बाद

एक भूके को मगर पाओ भर आटा न मिला

हाथ आएगा न परवाना-ए-जन्नत ऐ क़ौम

शैख़-साहिब को अगर हल्वा पराठा न मिला

किस तरह से किसी तामीर की होती तकमील

वक़्त पर जब कभी ईंटा कभी गारा न मिला

आज शमशीर-ए-बरहना वो लिए फिरते हैं

जिन के घर में कभी इक बाँस का फट्टा न मिला

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In Hindi By Famous Poet Shauq Bahraichi. is written by Shauq Bahraichi. Complete Poem in Hindi by Shauq Bahraichi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.