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ख़िलाफ़-ए-हंगामा-ए-तशद्दुद क़दम जो हम ने बढ़ा दिए हैं - शौक़ बहराइची कविता - Darsaal

ख़िलाफ़-ए-हंगामा-ए-तशद्दुद क़दम जो हम ने बढ़ा दिए हैं

ख़िलाफ़-ए-हंगामा-ए-तशद्दुद क़दम जो हम ने बढ़ा दिए हैं

बड़े बड़े बानियान-ए-जौर-ओ-सितम के बधिए बिठा दिए हैं

ख़याली ग़ुंचे खिला दिए हैं ख़याली गुलशन सजा दिए हैं

नए मदारी ने दो ही दिन में तमाशे क्या क्या दिखा दिए हैं

कोई तो है बे-ख़ुद-ए-तअय्युश कोई है महव-ए-हुसूल-ए-सर्वत

खिलौने हाथों में रहबरों के ये किस ने ला कर थमा दिए हैं

वतन में शाम-ओ-सहर जो होती है परवरिश शैख़ ओ बरहमन की

यतीम-ख़ाना में इन यतीमों के नाम किस ने लिखा दिए हैं

ये शैख़ हैं और ये बरहमन हैं ये वाइज़ ओ सद्र-ए-अंजुमन हैं

ज़माना पहचानता है सब को हर इक पे लेबल लगा दिए हैं

जफ़ा-शिआरों में शायद आ जाए इस तरह कुछ असर वफ़ा का

मँगा के मुर्ग़ियों के अंडे बतों के नीचे बिठा दिए हैं

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In Hindi By Famous Poet Shauq Bahraichi. is written by Shauq Bahraichi. Complete Poem in Hindi by Shauq Bahraichi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.