गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए
गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए
बुलबुलें क्या हैं हाथी फँसाए
उन से निगाहें कौन मिलाए
तेवरी चढ़ी है मुँह हैं फुलाए
मसनद-ए-ज़र पे बैठा है वाइज़
खींसें निकाले चंदिया घटाए
उस से वो मिलते रहते हैं अक्सर
रोज़ उन्हें जो चाय पिलाए
महव-ए-ख़िराम-ए-नाज़ है कोई
ज़ुल्फ़ों में कड़वा तेल लगाए
रात को अक्सर शैख़-ए-हरम भी
मय-कदे पहुँचे मुँह को छुपाए
गर्दिश-ए-क़िस्मत गर्दिश-ए-दौराँ
जिस को चाहे ख़ूब नचाए
जिस को भी चाहे दोस्त नवाज़े
जिस को न चाहे ठेंगा दिखाए
लेता है दस्त-ए-नाज़ के बोसे
हम से अच्छा लाईफ़-ब्वॉय
रोक निगाह-ए-हिर्स को माली
तेरे चमन को चरने न पाए
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