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ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़ - शौक़ बहराइची कविता - Darsaal

ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़

ऐ हम-सफ़ीर तलख़ी-ए-तर्ज़-ए-बयाँ न छोड़

तू गालियाँ दिए जा हमें गालियाँ न छोड़

वाइज़ बुतों के चाह-ए-ज़क़न का बयाँ न छोड़

वर्ना कहीं न पाएगा पानी कुआँ न छोड़

पहुँचा दे मक्र-ओ-कैद को हद्द-ए-कमाल तक

ऐ दोस्त ना-तमाम कोई दास्ताँ न छोड़

इन रहबरना-ए-क़ौम से या-रब बचा मुझे

चर लेंगी सब चमन मिरा ये बकरियाँ न छोड़

फूलों से भर सके न अगर दामन-ए-हवस

सेहन-ए-चमन की घास भी ऐ बाग़बाँ न छोड़

बे-वसवसा ग़रीबों पे भी हाथ साफ़ कर

मिल जाएँ तो जवार की भी रोटियाँ न छोड़

दीवानों के तो जैब ओ गिरेबाँ का ज़िक्र क्या

गर धज्जियाँ भी हाथ लगें मेहरबाँ न छोड़

इंसानियत में बाक़ी है सफ़्फ़ाक दम अभी

इक हाथ कस के और उसे नीम-जाँ न छोड़

ज़ालिम उसी ने नाक में दम कर दिया तिरा

रगड़े जा ख़ूब गर्दन-ए-अम्न-ओ-अमाँ न छोड़

अब ज़ुल्म में इज़ाफ़ा न कर बानी-ए-जफ़ा

क़स्र-ए-सितम के आगे कोई साएबाँ न छोड़

रंज-ओ-अलम का ज़ाइक़ा इक रोज़ तू भी चख

ये ख़ास जौनपुर की तू मूलियाँ न छोड़

ऐ 'शौक़' ये जफ़ाएँ हैं क्या ये सितम हैं क्या

हर इम्तिहाँ में बैठ कोई इम्तिहाँ न छोड़

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In Hindi By Famous Poet Shauq Bahraichi. is written by Shauq Bahraichi. Complete Poem in Hindi by Shauq Bahraichi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.