आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो
आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो
तूफ़ाँ कोई फिर आ के धमक जाए तो क्या हो
बस इस लिए रहबर पे नहीं मुझ को भरोसा
बुद्धू है वो ख़ुद राह भटक जाए तो क्या हो
अच्छी ये तसव्वुर की नहीं दस्त-दराज़ी
अंगिया कहीं इस बुत की मसक जाए तो क्या हो
वाइज़ ये गुलिस्ताँ ये बहारें ये घटाएँ
साग़र कोई ऐसे में खनक जाए तो क्या हो
ये चाह-कनी मेरे लिए बानी-ए--बेदाद
तू ख़ुद इसी कोइयाँ में लुढ़क जाए तो क्या हो
ग़ुर्बत से मिरी सुब्ह ओ मसा खेलने वाले
तेरा भी दिवाला जो खिसक जाए तो क्या हो
ये बार-ए-अमानत तू उठाता तो है लेकिन
नाज़ुक है कमर तेरी लचक जाए तो क्या हो
रुक रुक के ज़रा हाथ बढ़ा ख़्वान-ए-करम पर
लुक़्मा कोई जल्दी में अटक जाए तो क्या हो
मैं क़ैद हूँ पर आह-ए-रसा क़ैद नहीं है
वो जेल की दीवार तड़क जाए तो क्या हो
ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम ज़रा सोच ले ये भी
कुल्हड़ तिरी हस्ती का छलक जाए तो क्या हो
जल्लाद से ऐ 'शौक़' मैं ये पूछ रहा हूँ
तू भी यूँही फाँसी पे लटक जाए तो क्या हो
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