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बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए - शाैकत वास्ती कविता - Darsaal

बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए

बिखरे तो फिर बहम मिरे अज्ज़ा नहीं हुए

सरज़द अगरचे मोजज़े क्या क्या नहीं हुए

इंसान है तो पाँव में लग़्ज़िश ज़रूर है

जुर्म-ए-शिकस्त-ए-जाम भी बेजा नहीं हुए

हम ज़िंदगी की जंग में हारे ज़रूर हैं

लेकिन किसी महाज़ से पसपा नहीं हुए

इंसाँ हैं अब तो मुद्दतों हम देवता रहे

शक्लें नहीं बनीं जो हयूला नहीं हुए

ठहरो अभी ये खेल मुकम्मल नहीं हुआ

जी भर के हम तुम्हारा तमाशा नहीं हुए

हर सर से आसमान की छत उठ नहीं गई

कब तजरबा में शहर ये सहरा नहीं हुए

'शौकत' दयार-ए-शौक़ की रौनक़ उन्ही से है

जो अपनी ज़ात में कभी तन्हा नहीं हुए

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In Hindi By Famous Poet Shaukat Wasti. is written by Shaukat Wasti. Complete Poem in Hindi by Shaukat Wasti. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.