उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया हे
छूटा हुआ आँचल कहीं हाथ आया हे
बिखरी हुइ ख़ुश-बू कभी सिमटी है कहीं
गुज़रा हुआ इक पल कहीं हाथ आया है
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ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
हम-सफ़र
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
याद
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना