हम ग़रीबों के लिए ईद कहाँ
ज़िंदगी यास का गहवारा है
हर नफ़स ताज़ा उमीदों के लिए
इक दहकता हुआ अँगारा है
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
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एक वहशत है रहगुज़ारों में
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
हौसले की कमी से डरता हूँ
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
मायूसी
हम-सफ़र
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
आरज़ू
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना