तुम आए नसीब जाग उट्ठा
मायूस निगाह मुस्कुराई
लेकिन कोई कह रहा है मुझ से
अंजाम-ए-विसाल है जुदाई
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(975) Peoples Rate This
मायूसी
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
हम-सफ़र
उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं