दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
जैसे कोई पैमाना हो छलका छलका
आँखों के लिए मरकज़-ए-रानाई है
आँचल तिरे शानों पे ये ढलका ढलका
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ए'तिबार
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
अंजाम-ए-विसाल
हौसले की कमी से डरता हूँ
ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
उस की हँसी तुम क्या समझो
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ