आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
एहसास का रुख़ मोड़ रहा हो जैसे
दुनिया के मसाइल से गुज़रने वाला
यादों की डगर छोड़ रहा हो जैसे
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
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ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
याद
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
हसरत
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
आरज़ू
ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले