ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले
ज़िंदगी ख़ुद ही सिखा देगी उसे काम की बात
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दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
मायूसी
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
उस के नाम
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर