ये कैसी बे-क़रारी सुनने वालों के दिलों में है
वरक़ दोहरा रहा है क्या कोई मेरी कहानी का
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'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
अंजाम-ए-विसाल
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
हर बुरे वक़्त में काम आया था
उस के नाम