वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
बहुत दूर तक उन में पाया गया हूँ
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
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हसरत
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
एक वहशत है रहगुज़ारों में
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन
उस की हँसी तुम क्या समझो
नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है
हम-सफ़र
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर