उस की हँसी तुम क्या समझो
वो जो पहरों रोया है
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औरत
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
एक वहशत है रहगुज़ारों में
अंजाम-ए-विसाल
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
हौसले की कमी से डरता हूँ
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
याद