'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
अपनी निगाह में जो कभी आसमाँ रहे
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हौसले की कमी से डरता हूँ
ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
किसी की बाज़ी कैसी घात
औरत
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
हवाएँ रोक न पाईं भँवर डुबो न सके
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला
यास
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे