रात इक नादार का घर जल गया था और बस
लोग तो बे-वज्ह सन्नाटे से घबराने लगे
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
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ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
अंजाम-ए-विसाल
हर बुरे वक़्त में काम आया था
हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
औरत
ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए