क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
जो दूर से नज़र आता है अंजुमन यारो
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शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
एक वहशत है रहगुज़ारों में
आरज़ू
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
उस की हँसी तुम क्या समझो
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है
मायूसी
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे