मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
नज़्र-ए-साहिल हुए दरिया के शनावर कितने
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
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ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
हर बुरे वक़्त में काम आया था
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
एक वहशत है रहगुज़ारों में
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
यास
अंजाम-ए-विसाल
उस के नाम
बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन