ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
सच तो ये है कि वो धोका भी मुझे याद नहीं
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अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
हर बुरे वक़्त में काम आया था
अंजाम-ए-विसाल
ए'तिबार
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
यास
ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना