जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
कर दूँ फिर शो'ला-ब-दामाँ कि कोई बात चले
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कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
रात तारों से जब सँवरती है
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
अंजाम-ए-विसाल
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
किसी की बाज़ी कैसी घात
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे