होश वाले तो उलझते ही रहे
रास्ते तय हुए दीवानों से
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किसी की बाज़ी कैसी घात
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
यास
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला