हँसते हँसते बहे हैं आँसू भी
रोते रोते हँसती भी आई हमें
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मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
मायूसी
एहसास की लज़्ज़त के क़रीब आ जाओ
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
अंजाम-ए-विसाल
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए