अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
फिर उस के बा'द दिल में क्या ख़बर क्या आरज़ू होती
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उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
रात तारों से जब सँवरती है
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
एहसास की लज़्ज़त के क़रीब आ जाओ
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है