अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
ब-मुश्किल ज़िंदगी बिखरा हुआ हूँ
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Anwar Masood
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अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
ये कैसी बे-क़रारी सुनने वालों के दिलों में है
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
हम-सफ़र
हसरत
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
याद
यास
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार