रात तारों से जब सँवरती है
इक नई ज़िंदगी उभरती है
मौज-ए-ग़म से न हो कोई मायूस
ज़िंदगी डूब कर उभरती है
आज दिल में फिर आरज़ू-ए-दीद
वक़्त का इंतिज़ार करती है
दिल जले या दिया जले 'शौकत'
रात अफ़्साना कह गुज़रती है
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(553) Peoples Rate This
हौसले की कमी से डरता हूँ
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
ए'तिबार
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
याद
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
औरत
यास