एक वहशत है रहगुज़ारों में
एक वहशत है रहगुज़ारों में
क़ाफ़िले लुट गए बहारों में
साज़ ख़ामोश आरज़ू बीमार
कोई नग़्मा नहीं है तारों में
इस तरफ़ भी निगाह-ए-दुज़्दीदा
हम भी हैं ज़िंदगी के मारों में
ये तो इक इत्तिफ़ाक़ है वर्ना
आप और मेरे ग़म-गुसारों में
आदमी आदमी न बन पाया
बस्तियाँ लुट गईं इशारों में
देख कर वक़्त के तग़य्युर को
चाँद सहमा हुआ है तारों में
थे कभी रूह-ए-अंजुमन 'शौकत'
अब तो हैं अजनबी से यारों में
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