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एक वहशत है रहगुज़ारों में - शौकत परदेसी कविता - Darsaal

एक वहशत है रहगुज़ारों में

एक वहशत है रहगुज़ारों में

क़ाफ़िले लुट गए बहारों में

साज़ ख़ामोश आरज़ू बीमार

कोई नग़्मा नहीं है तारों में

इस तरफ़ भी निगाह-ए-दुज़्दीदा

हम भी हैं ज़िंदगी के मारों में

ये तो इक इत्तिफ़ाक़ है वर्ना

आप और मेरे ग़म-गुसारों में

आदमी आदमी न बन पाया

बस्तियाँ लुट गईं इशारों में

देख कर वक़्त के तग़य्युर को

चाँद सहमा हुआ है तारों में

थे कभी रूह-ए-अंजुमन 'शौकत'

अब तो हैं अजनबी से यारों में

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In Hindi By Famous Poet Shaukat Pardesi. is written by Shaukat Pardesi. Complete Poem in Hindi by Shaukat Pardesi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.