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मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरी - शौकत मेहदी कविता - Darsaal

मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरी

मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरी

ज़माने से भी कब हो कर रही पस्पाई मेरी

क़दम हैरत-सराए के जहाँ तस्ख़ीर करते

ठहर जाती किसी मंज़र पे जब बीनाई मेरी

किसी साज़िश में लाना मुद्दआ था दोस्तों का

सो पहले की गई थी हौसला-अफ़ज़ाई मेरी

तमाशा-गाह से बेहतर कहीं ख़ल्वत-नशीनी

सहर-आसार है मेरे लिए तंहाई मेरी

बहुत चाहा बहुत रोका पे सारे बंद टूटे

कि आँख उस को अचानक देख कर भर आई मेरी

मुक़य्यद हो के कब तक कौन रहता है कि 'मेहदी'

गली-कूचों तक आख़िर आ गई रुस्वाई मेरी

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In Hindi By Famous Poet Shaukat Mehdi. is written by Shaukat Mehdi. Complete Poem in Hindi by Shaukat Mehdi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.