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शिद्दत-ए-दर्द-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं - शातिर हकीमी कविता - Darsaal

शिद्दत-ए-दर्द-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं

शिद्दत-ए-दर्द-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं

और फिर आँख भी तर हो ये ज़रूरी तो नहीं

बे-ख़ुदी बाइस-ए-कुल्फ़त भी तो हो सकती है

हर नफ़स कैफ़-असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

ख़ुद को पामाल ही करना है तो ऐ जोश-ए-जुनूँ

वो तिरी राह-गुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं

नश्शा-ए-ख़्वाब चुरा लाए तिरी आँखों से

नाला-ए-शब में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

नज़र आता है जिधर सिलसिला-ए-नक़्श-ए-क़दम

मेरी मंज़िल भी उधर हो ये ज़रूरी तो नहिं

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In Hindi By Famous Poet Shatir Hakeemi. is written by Shatir Hakeemi. Complete Poem in Hindi by Shatir Hakeemi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.