वो बकरा फिर अकेला पड़ गया है
वो बकरा फिर अकेला पड़ गया है
कि मिरा हाथ भी डोंगे में अच्छी बोटियों को ढूँडता है
वही बकरा
खड़ा रक्खा गया है जिस को कोने में निगाहों से छुपा कर
वो जिस की ज़िंदगी है मुनहसिर इस बात पर
कि हम खाएँगे कितना
और कितना छोड़ देंगे बस यूँ ही अपनी पलेटों में
अभी कुछ देर पहले मैं खड़ा था पास जिस के
और जिस के ज़ाविए से देख कर महफ़िल को
आँखें डबडबा आई थीं मेरी
मगर वो पल कभी का जा चुका था
कि अब हूँ मेज़ पर मैं
और मेरा हाथ भी डोंगे में अच्छी बोटियों को ढूँडता है
वो बकरा फिर अकेला पड़ गया है
(511) Peoples Rate This