मरने वाले से जलन
ज़रा सा ग़म नहीं चेहरे पे इन के
मियाँ सर पर कोई रूमाल ही रख लो
इन्हें तो मौत आना ही नहीं है
वही ताने
वही फ़िक़रे
अभी तक मेरा पीछा कर रहे हैं हर जनाज़े में
मैं अपनी चाल की रफ़्तार थोड़ी और कम कर के
निकल आता हूँ बाहर भीड़ से
और रुक के इक दुकान पर सिगरेट जलाता हूँ
जनाज़ा दूर होता जा रहा है
ये सब क्या है?
अदाकारी नहीं आती मुझे तो क्या करूँ मैं
और सच्ची बात कह दूँ तो मुझे पागल समझ लेगी ये दुनिया
हाँ ये सच है
मुझे रत्ती बराबर ग़म नहीं होता किसी की मौत का
और ये भी सुन लो
मिरी जिस मुस्कुराहट पर यहाँ नाराज़ हैं सब
सबब इस का जलन है
जो मैं महसूस करता हूँ किसी भी मरने वाले से
कुढ़न होती है मुझ को सोच कर
कि मैं जिस इम्तिहाँ के ख़ौफ़ से बेहाल और बे-चैन फिरता हूँ
वो ये साहब
जो काँधों पर हैं
उन का हो चुका
और मेरा बाक़ी है
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